प्रशांत शर्मा
जी हां किसी ने सही कहा है कि जा पर कृपा राम की होई वा पर कृपा करे सब कोई, मामला जनपद की नगर पंचायत वजीरगंज का है दो वर्ष पहले निवर्तमान चेयरमैन उमर कुरैशी की पत्नी बजीरगंज की चेयरमेन थीं। यहीं पर एक मुलाजिम काम करता था, नाम था जहीर अहमद। जहीर अहमद नगर पंचायत वजीरगंज में एक सहायक कंप्यूटर ऑपरेटर का काम करता था, और दिन में ना जाने कितनी बार कुरैशी साहब से दुआ सलाम करता था। एक दिन अचानक जहीर से किसी बात पर बहस हो गई। उमर कुरैशी के कहने पर व उनके प्रभाव के कारण जहीर को नीचा दिखाया और साथ ही साथ अपनी पत्नी के चेयरमैन होने का रौब झाड़ते हुए जहीर को उसके काम से बर्खास्त कर दिया।
जहीर इस घटना से निराश जरूर हुआ लेकिन उसने हिम्मत नही हारी और उसी क्षण कुरैशी का तख्ता पलटने की कसम खा ली एवम् सैदपुर नगर पंचायत में आकर नौकरी शुरू करदी।
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दो साल मेहनत से काम करने के बाद जैसे ही नगर निकाय चुनाव नजदीक आए जहीर ने अपने पूर्व साहब के खिलाफ चुनावी मैदान में ताल ठोंक दी, और कॉलर तान के मुकाबला किया। सबसे पहले तो जहीर ने बहुजन समाज पार्टी के उस टिकट पर नजर जमाई जिससे उमर कुरैशी व उनकी पत्नी चुनाव जीतकर चेयरमैन बने थे। जहीर ने उस टिकट को कुरैशी से छीनकर अपनी मां को दिलवा दिया इसके बाद जहीर ने नगर में जी जान से चुनाव प्रचार किया। जहीर की शैली से नगर में उसे अच्छा प्यार मिला जहीर इस बात का लोगों को विश्वास दिलाने में सफल रहा कि वह नगर में विकास करा सकता है। जहीर ने बसपा के विपरीत चुनावी परिस्थिति में अपनी मेहनत और हुनर के दम पर अपनी मां नूर सबा बेगम को जीत दिलवाई। जहीर की कहानी सुनकर एक ही चीज याद आती है कि
हो जाएगा आसमान में भी छेद
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों ।
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