नेता बनना चाहते थे लेकिन बन गए चीफ जस्टिस आफ इंडिया

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जरूरी नहीं है कि आप जो बनना चाहते हैं वह बनें हो सकता है कि उससे भी कुछ बडा मिल जाए। ऐसा ही कुछ वाकया हुआ है भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन के साथ। उन्होंने एक कार्यक्रम में अपने जीवन से जुडे कई राज लोगों के साथ साझा किए। उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात का कोई मलाल नहीं है।
यहां बता दें कि भारत के मुख्य न्यायाधीश एनसी रमन रांची की यूनिवर्सिटी आफ स्टडी एंड रिसर्च द्वारा जस्टिस एसबी सिन्हा की स्मृति में आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। अपने जीवन के बारे में बताते हुए एनवी रमन ने बताया कि वह जब कक्षा छह में एडमीशन हुआ तब पहली बार अंग्रेजी से पाठ्यक्रम में शामिल हुई थी। दसवीं कक्षा पास करना हमारे समय में एक बडी उपलब्धि मानी जाती थी। उन्होंने कहा कि वह एक नेता बनना चाहते थे लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। चीफ जस्टिस का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था। बीएससी की परीक्षा पास करने के बाद पिता ने उनका हौसला बढाते हुए कानून की पढाई करने का सुझाव दिया। इसके बाद एनवी रमन ने मजिस्ट्रेट कोर्ट में वकालत करना शुरू की। कुछ समय बाद वह हैदराबाद हाईकोर्ट में प्रेक्टिस करने लगे। हैदराबाद हाईकोर्ट में एनवी रमन की वकालत की प्रेक्टिस की। इसी समय वह कई मामलों में पैरवी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट भी गए। कई मामलों में प्रभावी पैरवी की। अच्छी व प्रभावशाली प्रेक्टिस के कारण सरकार ने हाईकोर्ट में सरकार का पक्ष रखने के लिए अतिरिक्त सोलीसीटर जनरल नियुक्त कर दिया। इसके बाद उन्हें जज बनने

के बाद सबसे बडी समस्या होती है कि सामाजिक जिंदगी को छोडना। इसके साथ ही कई खुशी के पलों को भी छोडना पडता है। सौ से ज्यादा केसों की सुनवाई से पहले उनका अध्ययन करना भी आसान नहीं होता है। इसी समय उन्होंने बताया था कि वह नहीं सक्रिय राजनीति में नेता बनना चाहते थे लेकिन जो कुछ किस्मत को मंजूर था वही हुआ।
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