आनर किलिंग: कप्तान साहब बिसौली पुलिस सक्रियता दिखाती तो शायद दिनेश नहीं मरता

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आनर किलिंग में दिनेश की हत्या की बात खुल जाने के बाद केस तो खुल गया दो मुल्जिम जेल भी चले गए लेकिन दिनेश की हत्या अपने पीछे कई सवाल छोड गई जो पुलिस की लापरवाही, काम के प्रति निश्क्रियता व मनमानी को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करते हैं।
यहंा बता दें कि यूपी के बदायूं जनपद की बिसौली कोतवाली के गांव कोट निवासी युवक दिनेश का बिल्सी थाना क्षेत्र के गांव अंगोला, नगरिया की एक युवती से प्रेम प्रसंग था। इसी प्रेम प्रसंग में दोनों ने साथ जीने मरने की कसमें भी खाईं थीं। चूंकि दोनों ही अलग अलग जाति के थे इसलिए युवती के परिजन इस शादी को सहमत नहीं थे। इसी कारण से युवती के परिजनों ने युवती का विवाह तय कर दिया था। लेकिन युवती विवाह करने को सहमत नहीं थी इसीलिए युवती ने बीती 10 मई को दिनेश को फोन कर बुलाया था। इसके बाद युवक दिनेश जब युवती से मिलने गया। उसके बाद से युवक को फोन बंद हो गया। फोन पर घर वाले बार बार फोन करते रहे लेकिन युवक से कोई संपर्क नहीं हो सका। इसके बाद घर वाले अगले दिन 11 मई को थाना कोतवाली बिसौली गए जहां उन्होंने दिनेश के अपहरण की आशंका जताते हुए पूरी कहानी लिखते हुए पुलिस को तहरीर दी।

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लेकिन कप्तान साहब आपकी पुलिस ने यह कहते हुए उसकी तहरीर लेने से इंकार कर दिया कि अभी और ढंूढ लो तब फिर आना जबकि रवेन्द्र ने अपनी तहरीर में उस लडकी का फोन नंबर भी लिखा था जिस नंबर से फोन कर दिनेश को बुलाया गया था। इसके बाद पुलिस ने 12 मई को भी कोई कारवाई नहीं की। इसके बाद 13 मई को बिसौली पुलिस ने दिनेश के पिता रवेंद्र की तहरीर बदलवा कर गुमशुदगी दर्ज की। लेकिन पुलिस ने पिता की तहरीर के अनुसार अपहरण का मुकदमा दर्ज नहीं किया। कप्तान साहब पुलिस को अपहरण का मुकदमा दर्ज करना चाहिए था। लेकिन नहीं किया।इसके बाद इस मामले को अमर भास्कर डाट काम ने प्रमुखता से प्रकाशित किया तब पुलिस ने हरकत की, एवं पुलिस को जब कुछ सुराग मिले तब पुलिस ने 19 मई को स्वयं ही दिनेश के पिता रवेंद्र को बुलाकर तहरीर लिखवाई एंव अपहरण का मुकदमा दर्ज कर लिया। वो क्या कारण था जब 13 मई को गुमशुदगी दर्ज की गई जबकि 19 मई को अपहरण का मुकदमा दर्ज किया गया।

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इसके बाद अगले दिन पुलिस ने लाश भी बरामद कर ली। संदेह इस बात में भी है कि पुलिस के द्वारा अपहरण का मुकदमा दर्ज होने के 24 घंटे के अंदर ही लाश भी बरामद हो गई। यहंा पुलिस की भूमिका साफ दिखाई नहीं दे रही है। इसके साथ ही अगर नियम की बात की जाए तब अगर पुलिस ने 11 तारीख को ही अगर अपहरण का मुकदमा दर्ज कर लिया होता एवं पुलिस ने सक्रियता दिखाई होती तब शायद दिनेश जीवित भी मिल सकता था। भले ही रामाबाबू का बयान यह बताया जा रहा हो कि दस मई को ही दिनेश की हत्या कर दी गई थी लेकिन अंगोल गांव से जुडे सूत्र बताते हैं दिनेश की हत्या दो या तीन दिन बाद की गई थी। अगर पुलिस ने सक्रियता दिखाई होती तब शायद आज दिनेश जीवित होता।

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