सुप्रीम कोर्टSupreme Court ने कहा है कि अगर धारा 156(3) सीआरपीसी(156(3) Cr.P.C) के मामले मंे प्रार्थी के द्वारा अपने प्रार्थना पत्र के समर्थन में शपथपत्र नहीं दिया है तब यह प्रार्थना पत्र सुनवाई के योग्य नहीं है, इस पर मजिस्ट्रेट सुनवाई नहीं कर सकता है।
यहंा बता दें कि जब पुलिस किसी घटना की रिपोर्ट दर्ज नहीं करती है तब पीडित को सीआरपीसी की धारा 156(3) सीआरपीसी के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन कर रिपोर्ट दर्ज कराने का अधिकार है। इसी मामले के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह आवेदन शपथपत्र के साथ होना चाहिए। अगर शपथपत्र के साथ नहीं है तो यह उचित नहीं है।
एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि अगर शपथपत्र झूठा पाया जाता है, तो उस व्यक्ति पर कानून के तहत मुकदमा चलाया जाएगा।
प्रस्तुत मामले में आरोप है कि आरोपी ने पीडित से कोरे स्टांप पेपर प्राप्त किए और उक्त कोरे स्टांप पेपर का दुरुपयोग करते हुए व धोखाधडी व जालसाजी करके समझौते किए। इसलिए आरोपी भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 464, 465, 468 और 120बी के दंडनीय अपराधों अपराधी हैं।
इस मामले में पीडित ने बेंगलोर में अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट के न्यायालय में रिपोर्ट दर्ज करने के वास्ते प्रार्थना पत्र दिया था। जिस पर अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट बेंगलोर ने पुलिस को रिपोर्ट दर्ज कर विवेचना का आदेश दिया था।
इसी आदेश के खिलाफ आरोपी ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हुए याचिका दायर की थी। याचिका में याची के अधिवक्ता ने कहा था कि मजिस्ट्रेट ने अपने न्यायिक मस्तिष्क का प्रयोग बिना किए साईक्लोस्टाइल तरीके से आदेश पारित किया है। इस पर हाईकोर्ट ने याची की याचिका को खारिज कर दिया था।
इसके बाद याची ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट के समक्ष याचिका दायार कर मजिस्ट्रेट के आदेश को निरस्त करने की मांग की थी। याची का कहना था कि मजिस्ट्रेट को धारा 156(3) सीआर पीसी का आदेश जारी करने से पहले अपने न्यायिक मस्तिष्क का प्रयोग करने की आवश्यकता है। कहा गया कि आवेदक द्वारा विधिवत शपथपत्र दाखिल किए बिना मजिट्रेट आदेश जारी नहीं कर सकता है। इस मामले में भी आवेदक ने प्रार्थना पत्र को शपथपत्र से समर्थित नहीं किया है। याची का यह भी कहना था कि यह मामला सिविल नेचर का है इसमें रिपोर्ट दर्ज कराना उचित नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना शपथपत्र से समर्थित 156(3) सीआरपीसी का प्रार्थना पत्र मजिस्ट्रेट स्वीकार नहीं कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कारवाई रद्द करते हुए कहा कि इस कानूनी कारवाई को जारी रखना कानूनी प्रक्रिया का दुरूपयोग होगा।